https://www.kirrt.org/writing/navkiran1इस तेज़ रफ़्तार शहर में2019-05-28 20:34:13इस तेज़ रफ़्तार शहर में
बहुत कुछ अलग था,
उस शहर से
जिसे मैं छोड़ कर आई थी.Gurdeep SinghBlog postBlogBloghindinavkiranphoto essay
इस तेज़ रफ़्तार शहर में
Navkiran Natt
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इस तेज़ रफ़्तार शहर में बहुत कुछ अलग था, उस शहर से जिसे मैं छोड़ कर आई थी. कुछ सदियों पुराना फिर भी नया.
नोटों पर छपा दिखने वाला लाल पत्थर का बना किला, मस्जिद–जहां–नुमा और उसके मीनार से दिखने वाली एक दूसरी से मिलने दौड़ती और गले मिल आगे से आगे बढ़ती और फिर कहीं दूर एक दूसरी में समा जाने वाली पुरानी दिल्ली की तंग गलियां,
ईटों से बनी दुनिया की सबसे ऊँची मीनार, दीना पनाह और मक़बरा–ए–हुमायुं, और ऐसा बहुत कुछ जो सदियों से यहाँ था पर फिर भी नया था.
मगर इस नए शहर में कुछ एकदम अपना सा था, जो सालों से शहर शहर, गली गली मेरे साथ चला
ऐसे कुछ चेहरे जो अलग होकर भी अलग न थे जैसे गली की नुकड़ पर बैठा वो चाय वाला, याँ यहाँ से वहां सवारी ढोता रिक्शे वाला, फल–सब्ज़ी वाला, जल वाला, पेड़ के नीचे लगे शीशे में दिखता वो नाई, और बगल वाला हलवाई.
ये सब मेरे अपने से हैं ऐसे चेहरे जो सुबह से शाम गुम सायों की तरह हर शहर को चलाते हैं और हमें इस काबिल बनाते हैं कि हम शहरी हो पाएं.